सिनेमा और बाज़ार पर हिंदी में एक अच्छी पुस्तक
- कृतार्थ सरदाना
भारतीय फ़िल्मों का बाज़ार हॉलीवुड फिल्मों के आगे बहुत छोटा नजर आता है। कमाई के हिसाब से भले ही हॉलीवुड की उंगलियों पर गिनी जा सकने वाली फ़िल्में प्रतिवर्ष डेढ़ हजार से भी ज्यादा फ़िल्में बनाने वाले देश के बाज़ार पर कब्ज़ा जमा लेती हैं लेकिन इधर भारतीय फिल्मों ने भी देश में ही नहीं विश्व बाज़ार में भी पहचान बनानी शुरू की है। सिनेमा के बाज़ार और उसके बदलते स्वरूप पर हिंदी
में अभी तक कोई पुस्तक नहीं थी। ‘सिनेमा बीच बाज़ार’ इस कमी को पूरी करती है। पुस्तक में 10 अध्याय हैं।
पहला अध्याय ‘हिंदी सिनेमा: इतिहास के पन्नों से’ है जिसमें हिंदी सिनेमा के इतिहास की बाज़ार के नज़रिये से पड़ताल की गई है। दूसरा अध्याय’ सिनेमा :कला अथवा उत्पाद’ है। इसमें सिनेमा कला है अथवा एक उत्पाद मात्र है या फिर कला और उत्पाद दोनों है इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश है। तीसरा अध्याय ‘मनोरंजन उद्द्योग में हिंदी सिनेमा के स्थान पर केंद्रित है।
‘डिजिटल तकनीक के सहारे: मुट्ठी में बाजार’ अध्याय में डिजिटल क्रांति ने कैसे हिंदी सिनेमा की सूरत बदल दी इस पर सामग्री है। ‘फिल्मों में ब्रांड: कहानी और किरदारों के बहाने’ अध्याय में फिल्मों में ब्रांड इस्तेमाल के तरीकों पर उदाहरणसहित विस्तार से चर्चा है। ‘संगीत: धुनों पर झूमता बाजार’ में संगीत का फिल्मों में महत्व और संगीत से निर्माताओं को होने वाली कमाई पर काफी रोचक सामग्री है। विश्व बाज़ार में भारतीय फिल्मों के बाज़ार पर रोचक जानकारी ‘विश्व बाज़ार में भारतीय सिनेमा: सात समंदर पार की उड़ान’ अध्याय में है।
क्षेत्रीय सिनेमा: बाज़ार गढ़ने में सफल’ में क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों की गहरी पड़ताल है। आज क्षेत्रीय सिनेमा ने विश्व बाज़ार में भी हिंदी सिनेमा को पीछे छोड़ दिया है। बच्चों के लिये हॉलीवुड में सबसे अधिक फिल्में बनती हैं, भारत इन फिल्मों का बड़ा बाजार है लेकिन भारत में बच्चों की फिल्में न के बराबर बनती हैं, जो बनती हैं वो अपनी लागत भी नही निकाल पातीं, जबकि कुल आबादी का करीब 40 प्रतिशत 5 -14 वर्ष की आयु के बच्चों का है। ‘बाल सिनेमा : बड़ा है बाजार’ में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाल सिनेमा पर रोशनी डाली गई है।
अंतिम अध्याय ‘भारत में विश्व सिनेमा: बड़े बाज़ार तक पहुँचने की मजबूरी’ है। यह अध्याय इस बात पर फोकस करता है कि भारत फिल्मों का सबसे बड़ा बाज़ार है और इस बाज़ार को साधने के लिए विश्व के बड़े-बड़े निर्माता और फिल्म स्टुडियो पूरा दम लगा देते हैं।
लेखक जयसिंह ने जहां सिनेमा के बाज़ार जैसे जटिल विषय को सरलता और सहजता से समझाया है। वहां सिनेमा के अन्य विभिन्न पहलुओं पर भी कम शब्दों में काफी कुछ कह डाला है। जिसके लिए जयसिंह बधाई के पात्र हैं। इस सबसे 'सिनेमा बीच बाज़ार' पुस्तक सिनेमा के विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी है और सिनेमा से जुड़े और सिनेमा में दिलचस्पी रखने वाले व्यक्तियों के लिए भी।
किताब प्रत्येक अध्याय में तथ्यों और आंकड़ों के साथ बाज़ार को समझने की कोशिश करती है और इस कोशिश में सफल भी नज़र आती है। यह किताब सिनेमा में रुचि रखने वाले हर पाठक के लिए है।
पुस्तक
: सिनेमा बीच बाज़ार
लेखक: जयसिंह
प्रकाशक: सामयिक प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य: 250 रुपये