जापान, ब्रिटेन और न्यूज़ीलैंड में भी बसे हैं हिंदी प्रेमी

संपादित - संगीता सरदाना 

साहित्य अकादेमी यूँ तो अक्सर अपने साहित्यक आयोजन करता रहता है. लेकिन गत 20 सितम्बर को आयोजित प्रवासी मंच का कार्यक्रम इसलिए विशेष बन गया क्योंकि उस दिन जापान, ब्रिटेन और न्यूज़ीलैंड से आये हिंदी प्रेमियों ने इसमें हिस्सा लिया. जापान से पधारे हिदेआकि इशिदा, यूके से पधारे कृष्ण कुमार और न्यूजीलैंड से पधारे रोहित कुमार हैप्पी ने अपने-अपने देशों में हिंदी की वर्तमान स्थिति के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए अपनी रचनाएँ भी प्रस्तुत कीं। 

सर्वप्रथम कृष्ण कुमार ने इंग्लैंड में हिंदी शिक्षण की कमजोर होती स्थिति और उनके द्वारा बनाई गई संस्था गीतांजलि द्वारा किए गए कार्यों की संक्षिप्त जानकारी दी।

हिदेआकि इशिदा, जिनका हिंदी से 50 साल पुराना संबंध है, उन्होंने जापान में हिंदी की स्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि वहाँ हिंदी और उर्दू की पढ़ाई बरकत उल्लाह के प्रयासों से 1908 में शुरु हुई. उन्होंने बौद्ध धर्म, रासबिहारी बोस, सुभाष चंद्र बोस आदि के उल्लेख के साथ ही भारत में बिताए अपने ढाई सालों के संस्मरणों को भी प्रस्तुत किया। इस दौरान उन्होंने जैनेंद्र जी, महादेवी वर्मा, शिवरानी देवी से अपने मिलने के अनुभव भी साझा किए। उन्होंने जापान में उनके द्वारा निकाली जा रही पत्रिका हिंदी साहित्य के अंक भी समारोह में उपस्थित व्यक्तियों को दिखाए। 

रोहित कुमार हैप्पी ने न्यूजीलैंड में उनके द्वारा हिंदी भाषा के विकास हेतु किए गए तकनीकि प्रयासों का उल्लेख करते हुए अपनी वेबपत्रिका भारत दर्शनके बारे में विस्तार से बताया और अंत में स्वरचित दोहे ओर हाइकू भी प्रस्तुत किए। 

कार्यक्रम के प्रारंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने सभी अतिथियों का स्वागत, साहित्य अकादेमी की पुस्तकें भेंट करके किया। कार्यक्रम में जर्नादन द्विवेदी, नारायण कुमार, संतोष कुमार खरे, राकेश बी. दुबे, सुरेश ऋतुपर्ण आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन अकादेमी के संपादक हिंदी अनुपम तिवारी ने किया।