भारत
दुनिया में
पुस्तकों का
तीसरा सबसे
बड़ा प्रकाशक
है, इसके
बावजूद हमारे
देश में
लेखन को
एक व्यवसाय
के रूप
में अपनाने
वालों की
संख्या बहुत
कम है,
किसी देश
के सशक्तिकरण
में रक्षा,
स्वास्थ्य , परिवहन
या संचार
का सशक्त
होना तभी
सार्थक होता
है जब
उस देश
में उपलब्धियों,
जन की
आकांक्षाओं , भविष्य
के सपनों
और उम्मीदों
को शब्दों
में पिरो
कर अपने
परिवेश के
अनुरूप भाषा
व् अभिव्यक्ति
के साथ
व्यक्त करने
वालों की
भी पर्याप्त
संख्या हो
. एक पुस्तक
या पढ़ी
गयी कोई
एक घटना
किस तरह
किसी इंसान
के जीवन
में आमूल
चुल परिवर्तन
ला देती
है? इसके
कई उदाहरण देश
और विश्व
की इतिहास
में मिलते
हैं, ऐसे
बदलाव लेन
वाले शब्दों
को उकेरने
के लिए
भारत अब
आठ से
18 वर्ष
आयु के
बच्चों को
उनकी प्रारंभिक
अवस्था से
ही इस
तरह तराशेगा
कि वे
इक्कीसवीं सदी
के भारत
के लिए भारतीय
साहित्य के
राजदूत के
रूप में
काम कर
सकें . प्रत्येक
भारतीय “विश्व
नागरिक” हो
, इसके लिए
अनिवार्य है
कि देश
की आवाज़
उनकी अपनी
भाषा में
सुगठित तरीके
से वैश्विक
मंच पर
उभर कर
आये .
विदित हो 31 दिसम्बर के “मन की बात” में प्रधान मंत्री जी ने कहा था कि भारत भूमि के हर कोने में ऐसे महान सपूतों और वीरांगनाओं ने जन्म लिया, जिन्होंने, राष्ट्र के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया, ऐसे में, यह, बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारे लिए किए गए उनके संघर्षों और उनसे जुड़ी यादों को हम संजोकर रखें और इसके लिए उनके बारे में लिख कर हम अपनी भावी पीढ़ियों के लिए उनकी स्मृतियों को जीवित रख सकते हैं। उन्होंने अपने उद्बोधन में युवा लेखकों से आह्वान किया था वे देश के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में, आजादी से जुड़ी घटनाओं के बारे में लिखें। अपने इलाके में स्वतंत्रता संग्राम के दौर की वीरता की गाथाओं के बारे में किताबें लिखें. भारत अपनी आजादी के 75 वर्ष मनायेगा, तो युवाओं का लेखन आजादी के नायकों के प्रति उत्तम श्रद्दांजलि होगी। इस दिशा में अब युवा लेखकों के लिए एक पहल की जा रही है जिससे देश के सभी राज्यों और भाषाओं के युवा लेखकों को प्रोत्साहन मिलेगा। देश में बड़ी संख्या में ऐसे विषयों पर लिखने वाले लेखक तैयार होंगे, जिनका भारतीय विरासत और संस्कृति पर गहन अध्ययन होगा।
यह
योजना उन
लेखकों की
एक श्रंखला
विकसित करने
में मदद
करेगी जो
भारतीय विरासत, संस्कृति
और ज्ञान
प्रणाली को
बढ़ावा देने
के लिए
विषयों के
एक व्यापक
परिदृश्य पर
शोध और
लेखन कर
सकेंगे . सबसे
बड़ी बात
युवा अपनी
मातृभाषा में
खुद को
व्यक्त कर
सकेंगे और
उनके लेखन
को दुनियाभर
में प्रचारित
किये जाने
का अवसर
भी
मिलेगा . करने
और वैश्विक
/ अंतर्राष्ट्रीय मंच
पर भारत
का प्रतिनिधित्व
करने के
लिए सुअवसर प्रदान
करेगी।
भारत
सरकार के
शिक्षा मंत्रालय
ने इस
महत्वाकांक्षी योजना
के क्रियान्वयन
का जिमा
राष्ट्रिय पुस्तक
न्यास को
सौपा है
जो कि
गत 64 सालों
से देश
में हर
नागरिक को
कम लागत
की स्तरीय
पुस्तकें उनकी
अपनी भाषा
में पहुँचाने
के लिए
कार्यरत है
. राष्ट्रिय
पुस्तक न्यास
युवाओं को
बाकायदा प्रशिक्षण
प्रदान करेगा
. प्रशिशन के
लिए आये
बाल-लेखकों
को विभिन्न
प्रकाशन संस्थानों,
राष्ट्रीय व्
अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक
उत्सवों में
भागीदारी का
अवसर भी
मिलेगा, यही
नहीं जब
उनकी लेखनी
निखर आएगी
तो उनकी
पुस्तकें प्रकाशित करने
का भी
प्रावधान है
. प्रशिक्षण अवधि
में युवाओं
को छात्रवृति
भी मिलेगी
और उनकी
भाषा के
विख्यात और
स्थापित लेखों
का मार्गदर्शन
भी .
यदि
गंभीरता से
देखें तो
यह योजना
राष्ट्रीय शिक्षा
नीति-2020 के
उद्देश्यों में
निहित एक
ज्ञान-आधारित
समाज सुगठित
करने की
दिशा में
एक सामाजिक
निवेश होगी, जिससे
रचनात्मक युवाओं
के बीच
साहित्य और
भाषा की
प्रोन्नति के
विचार को
बढ़ावा मिलेगा
। उन्हें
भविष्य के
लेखकों और
रचनात्मक नेताओं
के रूप
में तैयार
करते हुए, यह
योजना संचित
प्राचीन भारतीय
ज्ञान की
समृद्ध विरासत
को केंद्र
में लाना
सुनिश्चित करेगी।
देश की सभी 22 अनुसूचित भाषाओँ में प्रारंभिक आयु से ही लेखन को एक वृत्ति के रूप में विकसित करने से यह अन्य नौकरी के विकल्प के साथ पठन और लेखन को एक पसंदीदा पेशे के रूप में लाना सुनिश्चित होगा . साथ ही कई भाषाओँ को नए लेखक और पाठक भी मिलेंगे, उन भाषाओँ पर मंडरा रहे लुप्त होने के संकट का निदान भी होगा . यदि बाल्यावस्था में ही किसी घटना, स्थान को बारीकी से अवलोकन करने और फिर उसे सुघड़ता से अपने शब्दों में प्रस्तुत करने का गुण विकसित हो जाता है तो ऐसे लोग देश की समस्या, शक्ति , निदान , योजनाओं और क्रियान्वयन पर बेहतर तरीके से कार्य करने लायक होते हैं क्योंकि उनके पास विचार का स्पष्ट चित्र होता है.
(लेखक राष्ट्रीय
पुस्तक न्यास
, भारत , शिक्षा
मंत्रालय के
निदेशक हैं
)