झंडेवाला मंदिर है क्यों है सबसे खास


झंडेवाला मंदिर है क्यों है सबसे खास


प्रदीप सरदाना


वरिष्ठ पत्रकार


दिल्ली के प्राचीन झंडेवाला देवी मंदिर की मान्यता और लोकप्रियता जिस तरह दिन पर दिन बढ़ती जा रही है, उससे सभी के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर इस मंदिर में ऐसा क्या खास और अलग है जो यहाँ लगभग हर समय भक्तों का तांता लगा रहता है।


प्रति रविवार और मंगलवार को तो यहाँ एक दिन में 40 से 50 हज़ार भक्त देवी माँ के दर्शन के लिए आते हैं। जबकि साल में दो बार नवरात्रि के 9 दिनों में तो दर्शकों की यह संख्या प्रति दिन एक लाख से भी अधिक तक हो जाती है। यह और मंदिर से जुड़ी कई अन्य जानकारी झंडेवाला मंदिर की प्रचार समिति के प्रमुख नन्द किशोर सेठी ने मुझे एक विशेष बातचीत में दीं। यहाँ यह भी बता दें श्री सेठी सन 1948 से झंडेवाला मंदिर आ रहे हैं, जब वह सिर्फ 13 बरस के थे। जबकि 1984 से तो वह मंदिर समिति से किसी न किसी रूप में लगातार जुड़े हुए हैं।   


झंडेवाला मंदिर की स्थापना सन 1875 के आसपास हुई थी। उस समय यह क्षेत्र अरावली की पहाड़ियों से घिरा एक मनमोहक स्थल था। जो उस दौर की मूल पुरानी दिल्ली से बाहर के हिस्से के रूप में प्रचलित था। जहां के घने जंगल,हरियाली और फलों के वृक्ष आदि सभी को अपनी ओर आकर्षित करते थे। इस शांत और प्राकृतिक मनोहर क्षेत्र को देख अक्सर कई तपस्वी यहाँ आकर साधना, तपस्या भी करते थे। जिनमें उस समय के एक बड़े कपड़ा व्यापारी बद्री दास भी थे, जो माँ दुर्गा के बड़े उपासक थे।


बताया जाता है कि एक बार जब वह यहाँ साधना में बैठे थे तो उन्हें अनुभूति हुई कि जैसे देवी माँ उनसे कह रही हैं कि यहाँ खुदाई कराओ। ऐसा आभास बार बार होने पर बद्री भगत ने इस क्षेत्र की ज़मीन खरीद कर यहाँ खुदाई कराई तो वहाँ प्राचीन मंदिर के अवशेषों के साथ माँ दुर्गा की एक प्राचीन मूर्ति भी मिली। बद्री भगत को यह देख जहां प्रसन्नता मिली वहाँ उन्हें तब दुख भी हुआ जब उन्होंने देखा कि खुदाई के दौरान माता रानी की मूर्ति के दोनों हाथ टूट गए। क्योंकि टूटने से वह मूर्ति अखंडित हो गयी थी और हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार अखंडित मूर्ति की पूजा नहीं की जाती।


यह देख बद्री दास विचलित हो गए। कहते हैं तब माँ दुर्गा ने उन्हें स्वप्न में आकर कहा कि तुम चिंता मत करो। यह पुरानी मूर्ति चांदी के हाथ लगवाकर यहीं नीचे गुफा में रहने दो और इसके ऊपर नए मंदिर का निर्माण कर वहाँ नयी मूर्ति की स्थापना कर दो। लेकिन जब भी ऊपर के नए मंदिर में पूजा पूजा हो तब नीचे गुफा में भी साथ साथ हो। उसके बाद बद्री भगत ने ऐसा ही किया। तब से यहाँ गुफा और ऊपर के मंदिर में एक साथ पूजा अर्चना की जाती है।


 



                                 झंडेवाला मंदिर क्यों पड़ा नाम


यहाँ यह भी बता दें कि जब बद्री दास जी ने इस स्थान की खुदाई कराई तो उन्हें प्राचीन मंदिर के अवशेष और देवी माँ की मूर्ति के साथ एक झंडा भी मिला। मंदिर बनने के पश्चात बद्री भगत ने वह झंडा मंदिर की प्राचीर पर लगा दिया। उस समय यह क्षेत्र वीरान सा था और दूर तक कोई आबादी नहीं थी। इसलिए वह झंडा दूर से ही दिखाई देता था जो इस बात का भी प्रतीक था कि यहाँ एक मंदिर है। बस तभी से लोग इसे झंडेवाला मंदिर कहकर संबोधित करने लगे और आगे चलकर यही नाम प्रचलित हो गया।


मंदिर में जहां गुफा में प्राचीन मूर्ति है और उसके ऊपर देवी माँ की नयी मूर्ति की स्थापना की गयी। वहीं गुफा में प्राचीन शिवलिंग और शिव परिवार भी है। साथ ही काली माता, लक्ष्मी माता, वैष्णो माता, शीतला माता, संतोषी माता, गणेश जी और हनुमान जी की प्रतिमाओं की स्थापना भी यहाँ पर की गयी।  


                                    सभी सच्ची मनोकामनाएँ होती हैं पूरी    


बताया गया कि पूरे देश में एक यही मंदिर है जहां मूर्ति अखंडित होने के बावजूद उसकी पूजा की जाती है। यह बात तो इस मंदिर को अन्य सभी मंदिर से खास बनाती ही है। साथ ही यह मान्यता है कि इस गुफा में देवी माँ के सामने सच्चे मन से प्रार्थना कर, जो भी सच्ची कामना करता है वह पूरी होती है। यही कारण है कि दिन पर दिन यहाँ की लोकप्रियता और मान्यता बढ़ती जा रही है।


चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दिनों में यहाँ श्रद्दालुओं का अपार जन समूह देवी माता के दर्शन के लिए उमड़ पड़ता है। जबकि पिछले कुछ बरसों से नववर्ष के दिन भी इतने भक्त जन आते हैं कि पैर रखने की जगह भर ही मुश्किल से मिलती है।


इसके अलावा करवा चौथ और दीपावली के दिनों में भी यहाँ भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है। करवा चौथ के दिन यहाँ मंदिर में जो भी महिलाएं उपवास रख अपनी पति की लंबी आयु की प्रार्थना करने के लिए आती हैं, उन सभी को माता की चुन्नी उपहार स्वरूप दी जाती है। दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा पर भी यहाँ विशेष उत्सव धूमधाम से आयोजित होता है। जिसमें गोवर्धन पूजा और उसके बाद अन्नकूट भंडारे का भव्य आयोजन भी होता है। साथ ही गणेश उत्सव के दिनों में भी यहाँ का नज़ारा देखते ही बनता है।


                                       कार खरीदने पर भी यहाँ आते हैं भक्त


झंडेवाला मंदिर की एक खास बात यह भी देखी गयी है कि कार, स्कूटर और मोटरसाइकिल आदि वाहन खरीदने के बाद बहुत से लोग सबसे पहले इस मंदिर में ही पूजा के लिए आते हैं। लोगों का विश्वास है कि कार आदि खरीदने के बाद यदि यहाँ आकार पूजा की जाये तो माँ उनके वाहन के साथ उनको भी सुरक्षा प्रदान करती हैं।


इस मंदिर का संचालन यूं तो सन 1944 से ही बद्री भगत झंडेवाला देवी मंदिर न्यास के पास था। लेकिन बीच में कुछ बरसों के लिए कुछ पंडित परिवारों ने भी इसका जिम्मा अपने हाथ में ले लिया था। लेकिन सन 1980 के दशक के आरंभिक वर्षों में बद्री भगत झंडेवाला ट्रस्ट ने इसे पूरी तरह अपने हाथों में लिया हुआ है। इसके बाद ही मंदिर को नित भव्यता प्रदान करने के साथ यहाँ से चढ़ावे में प्राप्त धनराशि को जन कल्याण में लगाने की बड़ी प्रक्रिया आरंभ हुई।


इस ट्रस्ट में मंदिर के संस्थापक भगत बद्री दास जी के वंशजों के साथ समाज के कई प्रतिष्ठित व्यक्ति प्रमुख पदों पर रहते हैं। इस समय बद्री भगत जी के वंशजों में नवीन कपूर मंदिर समिति के अध्यक्ष हैं,जबकि सुरेन्द्र कपूर और ऋतु चावला ट्रस्टी हैं। पूर्व में विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष रहे और राम जन्म भूमि मंदिर आंदोलन के प्रमुख अशोक सिंघल भी झंडेवाला मंदिर के न्यासी रह चुके हैं। वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दिल्ली प्रांत संघचालक और जाने माने समाज सेवी कुलभूषण आहूजा झंडेवाला मंदिर ट्रस्ट में सचिव हैं।


 



ट्रस्ट लगातार मंदिर के विकास और उसे भव्यता प्रदान करने के साथ भक्तों को कई प्रकार की सुविधाओं के प्रयास में लगा है। मंदिर पहुँचने के मार्गों को तो व्यवस्थित और सुगम किया ही गया है। साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी मंदिर परिसर को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए भी विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। यहाँ तक मंदिर में चढ़ाये गए फूल और मालाओं से भी खाद बनाकर उसका सदुपयोग किया जाता है।


मंदिर में आए जाने वाले चढ़ावे को लेकर यहाँ पूर्ण पारदर्शिता अपनाने के साथ उस चढ़ावे से शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला कल्याण आदि में कई अच्छे कार्य किए जा रहे हैं। जिसमें मंदिर परिसर में दो  निःशुल्क ऐलोपैथिक एवं होम्योपैथिक औषधालय भी चल रहे हैं। लड़कियों के लिए एक मेंहदी प्रशिक्षण केंद्र भी यहाँ संचालित होता है, ये लड़कियां मेले के दिनों में मंदिर में आई महिलाओं को  निःशुल्क मेहंदी लगाती हैं।


उधर मंदिर ट्रस्ट ने मंडावली में एक संस्कृत वेद विद्यालय की भी स्थापना की है। मेले के दिनों में उपवास रखने वाली महिलाओं के लिए मंदिर परिसर में व्रत के खाने के भंडारे के साथ सामान्य खाने और फल आदि की चाट का भंडारा भी चलता है।


झंडेवाला मंदिर की व्यवस्था में अपनी भागीदारी निभाने के लिए जहां करीब 30 पुजारी और करीब 100 अन्य व्यक्ति नियुक्त हैं। वहाँ लगभग 2500 पुरुष और महिलाएं सेवादार के रूप में अपनी मुफ्त सेवाएँ प्रदान करते हैं।


इधर अब पिछले कुछ बरसों से तो यहाँ एक नयी परंपरा बन गयी है कि नवरात्र शुरू होने से एक दो दिन पहले, दिल्ली-एनसीआर के अनेक मंदिरों से लोग झंडेवाला मंदिर आकार अपने मंदिर की ज्योत प्रज्ज्वलित करके ले जाते हैं। यहाँ यह भी बता दें कि इस झंडेवाला देवी मंदिर की एक खास बात यह भी है कि गुफा की प्राचीन मूर्ति में दो अखंड ज्योति पिछले लगभग 80 बरसों से लगातार प्रज्ज्वलित हो रही हैं।


प्रदीप सरदाना


वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक 'पुनर्वास'