भारत में जन्म से मृत्यु तक साहित्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है- के. श्रीनिवासराव

 
साहित्य अकादेमी द्वारा आज़ादी के अमृत महोत्सव पर संगोष्ठी संपन्न

आज़ादी के अमृत महोत्सव पर साहित्य अकादेमी के दिल्ली कार्यालय में आज 15 अगस्त को स्वाधीनता संग्राम में लेखकविषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष एवं प्रख्यात कन्नड़ साहित्यकार चंद्रशेखर कंबार ने की। 

संगोष्ठी के आरंभ में स्वागत वक्तव्य देते हुए साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि भारत देश की भूमि साहित्य की भूमि है और यहां जन्म से मृत्यु तक साहित्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्वतंत्रता संग्राम के समय में पत्रकारिता और क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य ने ही नहीं इनके वाचिक साहित्य ने भी अपनी अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने साहित्य अकादेमी द्वारा आज़ादी के अमृत महोत्सव पर दो वर्षों तक किए जाने वाले कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि अकादेमी इस अवसर पर कुछ विशेष पुस्तकों का भी प्रकाशन करेगी। 

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में चंद्रशेखर कंबार ने कहा कि आज़ादी का साहित्य से गहरा संबंध हैं समाज के सभी वर्गों ने इसमें उत्साह से भाग लिया और आम जनता को आज़ादी के लिए मानसिक रूप से तैयार किया। आज भी किताबें हमें जागरूक करने का कार्य बखूबी कर रही हैं।

संगोष्ठी में मधु आचार्य आशावादी’ (राजस्थानी), बलवंत जानी (गुजराती), रामवचन राय एवं उषा किरण खान (मैथिली और भोजपुरी), चंद्रभान ख़्याल (उर्दू), राधावल्लभ त्रिपाठी (संस्कृत), सोमा बंद्योपाध्याय (बाङ्ला), आर. वेंकटेश (तमिऴ), दिनकर कुमार (असमिया), विजयानंद सिंह (ओड़िआ), हरिराम मीणा (आदिवासी साहित्य), राजेंद्र राव (हिंदी पत्रकारिता) आदि ने अपनी-अपनी भाषाओं में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पत्रकारों और इन भाषाओं के लेखकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि बहुत से ऐसे नाम हैं जिन्हें आज हम भुला चुके हैं। 

तरुण विजय ने स्वाधीनता संग्राम में पत्रकारिता की महत्त्वपूर्ण भूमिका को उल्लेखित करते हुए कहा कि साहित्य अकादेमी भारतीय भाषाओं के साहित्य को परस्पर जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

कवि अग्निशेखर ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में, दिनेश कुमार चौबे ने असम, मेघालय और मणिपुर में स्वतंत्रता के लिए कार्य करने वाले पत्रकारों और लेखकों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन क्षेत्रों के पत्रकारों और लेखकों की कम चर्चा होती है लेकिन यहां के पत्रकारों एवं लेखकों की भूमिका को हमें याद रखना चाहिए। 

इस अवसर पर साहित्य अकादेमी की गृह पत्रिका आलोकका स्वतंत्रता सेनानी हिंदी विशेषांक का लोकार्पण भी किया गया।

अपने समापन वक्तव्य में साहित्य अकादेमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि देश के साहसी लेखकों की कलम तब भी आज़ाद थी जब देश पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादेमी के संपादक (हिंदी) अनुपम तिवारी ने किया।