भारत रत्न अधिकतर राजनेता ही क्यों बनते हैं


भारत रत्न अधिकतर राजनेता ही क्यों बनते हैं


          अक्सर राजनेताओं को ही क्यों मिलता है भारत रत्न


प्रदीप सरदाना


वरिष्ठ पत्रकार


हाल ही में देश की तीन विभूतियों को भारत रत्न प्रदान किए गए, प्रणब मुखर्जी, नानाजी देशमुख व भूपेन हजारिका.यदि अब तक भारत रत्न प्राप्त करने वाले सभी नाम पर गौर किया जाए तो एक बात साफ़ झलकती है, भारत रत्न अधिकतर राजनेताओं को ही मिलता रहा है.


प्रणब मुखर्जी राजनेता रहे जो बाद में राष्ट्रपति बने, नानाजी देशमुख भी राजनेता थे. बहुमुखी प्रतिभा के धनी भूपेन हजारिका यूँ मूलतः संगीत और फिल्म की दुनिया से रहे. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि भूपेन हजारिका ने सन 2004 में भाजपा के टिकट पर गुवाहाटी से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था.


हालाँकि साफ़ कर दें कि इस बार के ये तीनों भारत रत्न हों या अब से पहले बने सभी भारत रत्न, किसी की भी योग्यता पर हम सवाल नहीं उठा रहे और न ही किसी को कम करके आंकने का कोई अभिप्राय है. सभी ने देश को किसी न किसी रूप में अपना विशिष्ट योगदान दिया है. यहाँ सवाल बस यह है कि सरकार कोई भी रही हो, भारत रत्न देने के मामले में लगभग सभी की प्राथमिकता राजनेता ही रहे हैं. इससे यह सन्देश जाता है कि देश के इस सर्वोच्च नागरिक सम्मान पर सबसे पहला और सबसे बड़ा हक़ राजनेताओं का ही है. उसके बाद कोई गुंजायश बची तो देश की अन्य विभूतियों में से किसी का नंबर आएगा. इससे लगता है, उच्च पदों पर आसीन रहे व्यक्ति आसानी से भारत रत्न बन जाते हैं. जबकि अपने विशिष्ट कार्य से देश का नाम करने वालों के लिए भारत रत्न बनना बहुत मुश्किल है,



'भारत रत्न' सम्मान की स्थापना जनवरी 1954 में की गयी थी. इस सर्वोच्च सम्मान पाने वालों के नियमों को लेकर, उनमें बाद में मुख्यतः दो बदलाव किये गए.एक यह कि ये सम्मान किसी को मरणोपरांत भी दिए जा सकेंगे. दूसरा बदलाव 2011 में यह हुआ कि पहले ये सम्मान कला,साहित्य,विज्ञान और जन सेवा के क्षेत्र में ही प्रदान किये जा सकते थे. लेकिन अब इसमें 'मानव के किसी भी अच्छे कार्य के लिए' जोड़कर इस सम्मान पाने के रास्ते सभी के लिए खोल दिए गए. नियमों में दूसरा बदलाव मूलतः इसलिए किया गया कि सरकार सचिन तेंदुलकर और ध्यान चंद जैसे खिलाडियों को भारत रत्न देना चाहती थी. लेकिन 'खेल' क्षेत्र पूर्व नियमों में शामिल नहीं था. इसके बाद सरकार ने हॉकी के जादूगर रहे ध्यानचंद को तो भारत रत्न नहीं दिया. लेकिन क्रिकेट से सचिन तेंदुलकर को सन 2014 में भारत रत्न दे दिया गया. 


'भारत रत्न' जैसे शिखर सम्मान को लेकर यूँ विवाद तो अकसर होते रहे हैं. कुछ विवादों के चलते और कुछ अन्य कारणों से पिछले 65 बरसों में कुल मिलाकर 39 बरस तो ये पुरस्कार दिए ही नहीं जा सके. जिस कारण सिर्फ 26 बरसों में ही 'भारत रत्न' प्रदान किये गए. किसी वर्ष यह सम्मान एक को,कभी दो और कभी 3 व्यक्तियों को दिए गए. जिससे अब तक कुल 48 व्यक्तियों को ये सम्मान मिला.लेकिन आश्चर्य यह है कि इनमें सिर्फ 18 भारत रत्न प्राप्त हस्तियाँ  ही राजनीति की दुनिया से बाहर की हैं. जिनमें संगीत से एमएस सुब्बुलक्ष्मी, रविशंकर,बिस्मिल्लाह खान,भीमसेन जोशी, सिनेमा से सत्यजित रे और लता मंगेशकर,शिक्षाविद भगवान दास, महर्षि धोंडो केशव कारवे और मदन मोहन मालवीय, उद्योगपति जेआरडी टाटा, अर्थशास्त्री अमृत्य सेन हैं तो साहित्यकार, वैज्ञानिक, अभियंता और समाजसेवा आदि क्षेत्रों से पांडुरंग वामन काणे, सीएनआर राव और आचार्य विनोबा भावे हैं. इनमें समाज सेवा के लिए भारत रत्न प्राप्त एक गैर भारतीय, संत मदर टेरेसा भी हैं. जबकि अन्य सभी 30 व्यक्ति तो राजनीति क्षेत्र से ही संबंधित हैं, जिनमें दो व्यक्ति गैर भारतीय अब्दुल गफ्फार खान और नेल्सन मंडेला भी शामिल हैं. .



इस सम्मान में राजनेताओं को अधिक महत्त्व देने का सिलसिला इसकी शुरुआत से ही साफ़ देखा जा सकता है. सन 1954 में पहली बार जिन तीन हस्तियों को भारत रत्न दिया गया उनमें सी राजगोपालाचारी, एस राधाकृष्णन और वैज्ञानिक सीवी रमण थे. जिनमें राजगोपालाचारी तो देश के अंतिम गवर्नर जनरल रह चुके थे. साथ ही वह स्वतंत्र पार्टी के संस्थापक होने के साथ तत्कालीन मद्रास स्टेट के मुख्यमंत्री भी थे. जबकि तब के उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन को भारत रत्न एक शिक्षाविद के नाते दिया गया. यूँ वह बाद में राष्ट्रपति भी बने.


देखा जाए तो राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति,प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और मुख्यमंत्री पदों पर रहे 20 व्यक्तियों को अब तक भारत रत्न से नवाज़ा जा चुका है. जिनमें पंडित नेहरु, इंदिरा गाँधी को अपने प्रधानमंत्री रहते और राधाकृष्णन, डॉ जाकिर हुसैन को उनके उपराष्ट्रपति रहते, गोविन्द बल्लभ पन्त को गृहमंत्री रहते और डॉ बीसी रॉय को पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री रहते हुए ही यह सम्मान मिल गया.


जबकि डॉ राजेन्द्र प्रसाद, वीवी गिरी, मोरारजी देसाई, गुलजारी लाल नंदा और अटल बिहारी वाजपेयी को यह सम्मान उनके जीवनकाल में तब मिला जब वे अपने पद पर नहीं थे. यहाँ यह भी बता दें कि एपीजे अब्दुल कलाम को भारत रत्न उनके राष्ट्रपति बनने से करीब पांच साल पहले 1997 में उनकी अन्तरिक्ष विज्ञान में की गयी असाधारण सेवाओं के लिए ही मिल गया था.


जबकि लाल बहादुर शास्त्री,राजीव गांधी, सरदार पटेल, मौलाना आजद, बीआर आंबेडकर, जयप्रकाश नारायण,के कामराज,एमजी रामचंद्रन,अरुणा आसफ अली और  गोपीनाथ बोर्डोलोई जैसे राजनेताओं को भारत रत्न मरणोपरांत प्रदान किया गया. यूँ जब 1992 में सुभाष चन्द्र बोस को मरणोपरांत श्रेणी में भारत रत्न देने की घोषणा हुयी तो उसका इसलिए विरोध हुआ कि वह अभी जीवित हैं. इस कारण उनके सम्मान को निरस्त कर दिया गया. यूँ यहाँ मरणोपरांत में इस सम्मान को देने के नियमों और परम्पराओं को लेकर एक सवाल यह भी उठता है कि आखिर कितने वर्ष पीछे तक जाकर इस सम्मान को दिया जाए. मालवीय जी को उनके निधन के 69 बरस बाद और सरदार पटेल को निधन के 41 साल बाद भारत रत्न दिया गया.


                                                              सभी नियम स्पष्ट बनें


देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए इसकी अवधि और सभी नियम स्पष्ट निर्धारित होने चाहिएं. सिर्फ राजनेताओं को प्राथमिकता न देकर गैर राजनैतिक विभूतियों को भी यह सम्मान संतुलित और समान रूप से मिले. महिलाओं और साहित्यकारों की इन सम्मान में उपेक्षा न हो इस पर भी ध्यान देने की जरुरत है.क्योंकि अभी तक सिर्फ पांच महिलाओं और मूलतः साहित्यकार में एक-दो को ही भारत रत्न मिला है. विदेशी नागरिकों को यह सम्मान देने के मामले में भी स्थिति स्पष्ट हो. इसके अतिरिक्त यह भी कि क्या भारत रत्न इसके स्थापना वर्ष 1954 से पूर्व की, मृत महान हस्तियों को दिया जाए या नहीं. वैसे बेहतर तो यही होगा कि मरणोपरांत सिर्फ उन्हीं को भारत रत्न मिले जिनका निधन, भारत रत्न स्थापना के बाद हुआ है. क्योंकि भारत जैसे गौरवशाली देश में महान विभूतियों का विस्तृत इतिहास है. इससे पिछली कई सदियों की विभूतियों को, भारत रत्न देने की मांग का अंतहीन सिलसिला शुरू होने के विवादों से भी कुछ राहत मिल सकेगी.   


 


प्रदीप सरदाना


वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक 'पुनर्वास'